वो अपलक निहारना,
वो मुड़-मुड़ कर देखना,
वो खुशियों में शरीक होना,
वो गम में हौसला देना,
हाँ, मैं मान चुका हूँ कि
वो आप ही थी, आप ही हैं
और बाकायदा आप ही ताउम्र रहेंगी।।

वो सपनों में मुझको देखना,
वो कविताओं में मुझको लिखना,
वो देर रात मुझको जगाना,
वो हर सुबह मेरा दरवाजा खटखटाना,
हाँ, मैं मान चुका हूँ कि
वो आप ही थी, आप ही हैं
और बाकायदा आप ही ताउम्र रहेंगी।।

तो, अब कैसी नाराजगी मुझसे?
तो, अब कैसी शिकायत मुझसे?
बैठा तो हूँ मैं, सुनसान छत पे
तुम्हारे घर को निहारते,
एक बार अपनी खिड़की तो खोलो
एक बार बालकनी पे तो आओ
जैसा पहले करती थी तुम
आज फिर एक बार आ जाओ
बस एक आखिरी बार
अपनी उसी मुस्कान के साथ
अपनी उसी शरारती आंखों के साथ
अपने उन्ही खूबसूरत खुले बालों को नचाते हुए
अपने उसी अपनेपन के साथ
बस एक आखिरी बार
बस एक आखिरी बार।।