Monday, December 10, 2018

बेटियाँ

बेटियां क्या हैं?
एक नया संसार या फिर बिन बुलाई मेहमान?
ख़ैर, क्या फर्क पड़ता है
बेटियां तो असल में पराया धन होती है।
मेरे घर में झाँको या
फिर मेरे धार्मिक दुश्मन ख़ान साहब के यहाँ
दोनों तरफ की बेटियां चिंता की लकीर ही होती है।
यहाँ सब धर्म-निरपेक्ष हैं
कितना भी कत्लेआम करें हम सब
बेटियों की लकीर सीधी रेखा में ही दिखेगी।
एक ही गाड़ी में सवार होकर बेटी का वर ढूंढने निकल पड़ते हैं
दोनों एक दूसरे को दुआ देते हैं।
क्यों?
क्योंकि बेटियाँ जोड़ती हैं।
ख़ैर, क्या फर्क पड़ता है
बेटियाँ तो असल में घर का बोझ होती हैं।

परसों, एक बाप को रोते हुए देखा था मैंने
पूछने की जरूरत नहीं पड़ी
कि क्यों रो रहे हो चचा
क्योंकि उनकी तीन बेटियां शादी करने को बची थी।

कल एक लड़की किताबों को सहेजने में लगी थी
बड़ी खुश लग रही थी,
पर एकाएक उसकी मुस्कान डर में बदलने लगी
जब उन पुरानी किताबों में अपनी बड़ी बहन की शादी का कार्ड देखा
अभी दो साल पहले उसको ससुराल वालों ने जला दिया।
क्यों?
क्योंकि बेटियाँ सच से वाकिफ कराती हैं।
ख़ैर, क्या फर्क पड़ता है
बेटियाँ तो असल में पैसे पाने का तरीका होती हैं।

मेरे घर की बाई ने दो दिन की छुट्टी की बात की
मैंने पूछा क्यों?
हँसते हुए बताई परसों मेरी आखिरी बेटी की शादी है
हैरानी से पूछा कि सिर्फ दो दिन पहले से क्यों
आपको पहले बताना चाहिए था
वो बोली, बेटा
अभी भी मिक्सी नहीं खरीद पाई हूं उसके लिए
और पहले से घर बैठ के क्या करना
बिटिया है, वो सब कर लेती है
बस बर्तन नहीं साफ करने देती मैं
वो हाथ खराब लगने लगते हैं ना बाबू।

मैं हँसने लगा,
लगा किसी के लिए तो बेटियों
के हाथ खराब होने की फिक्र है।
लगा,
ईश्वर ने तराजू यहाँ भी बनाई है
माँ बना कर उसे ख़ुद पर अभिमान होता होगा।

अब समझ आया कि
बेटियाँ क्या होती है
बेटियाँ माँ होती है।
ख़ैर, क्या फर्क पड़ता है।

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