पिछले कुछ वक्त से भीड़तंत्र नाम का एक जिन्न भारत में घर कर गया है। कभी भी, कहीं भी राजेन्द्र बाबू, सरदार साहब, नेहरू जी और महान डॉक्टर आम्बेडकर जी के द्वारा पोषित संविधान के नियमों को तार-तार कर दिया जाता है और फिर शुरू होता है कानून का मकड़जाल। मतलब कानून तोड़ने वाले को ये पता होता है कि इससे निकलने का रास्ता तो है ही अपने पास, तो डर किस बात का? लगा दो आग कहीं भी, कभी भी।
पूरे देश में नज़र घुमा के देखा जाए तो हर तरफ कानून के नाम पर सौदेबाज़ी चल रही है। कोई धर्म को आगे करता है तो कोई इतिहास बताने लगता है तो किसी का अपना अलग राग होता है। कुछ हद तक बहुतों की बातें सही भी लगती है, पर इंसान के भीतर की भावनाएं ही हमको राम या फिर रावण बनाती हैं। इसीलिए हमारे पूर्वजों ने हमको संविधान दिया क्योंकि समाज का पथप्रदर्शक कोई इंसान हो ही नहीं सकता। संविधान में हर वो चीज़ लिखी गई है जिसका सामना हम असल जिंदगी में करते हैं, तो हमको क्या समस्या होनी चाहिए ऐसी व्यवस्था से?
समस्या सिर्फ एक है कि हमको वो शिक्षा नहीं मिल पाती जिसके तहत हमको आज के समाज में रहना है। मैंने अपनी माँ से गीता की पंक्तियां सुनी है, अखंड ज्योति की कहानियां सुनी है पर संविधान की एक भी धारा नहीं सुनी। तो क्या हम अपने समाज को उचित शिक्षा दे रहे हैं? हम सड़क के नियम जानने से पहले गाड़ी चलाने का लाइसेंस अपने पापा के परिचय वाले से बनवा लाते हैं और सोचते हैं कि ये तो आम बात है, पर शायद इन्ही बातों का व्यापक पैमाने पर असर हो रहा है।
पासपोर्ट वेरिफिकेशन के वक़्त हमको पता होता है कि पुलिस वाले कुछ रुपए लेंगे और सत्यापन कर देंगे और इसमें हमको कुछ भी गलत नहीं लगता। तो क्या ये गलत नहीं है? हाँ, शायद मेरी बातें प्रैक्टिकल नहीं हैं, पर एक नज़रिये से इस भीड़तंत्र की शुरूआत यहीं से होती है। गीता, रामचरितमानस या फिर महाभारत, ये सारी उस वक़्त के समाज के संविधान थे, जो शुरुआत में अपरिपक्व थे पर धीरे धीरे संशोधन होते गए और एक आइडियल पुस्तक बन गई, जिसकी हम आज पूजा करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि मनु स्मृति श्रीमद्भगवद्गीता का वृहद रूप है, हाँ हो सकता है पर उसमे समय के हिसाब से परिवर्तन करते हुए ही हम गीता पर पहुँचे होंगे। यहाँ एक बात और इंगित करना चाहूंगा कि जितना अधिकार मेरे धर्म ने मुझको दिया है उसके हिसाब से मेरे और मेरे ईश्वर के बीच कोई नहीं आ सकता। मैं अपने ईश्वर से लड़ सकता हूँ, उनसे बिना तर्क असहमत हो सकता हूँ और उनको गलत भी साबित कर सकता हूँ। तो कोई मुझे हिन्दू विरोधी कहे, वो उसका अधिकार है मुझे उसके कहने से कोई भी फर्क नहीं पड़ता।
हाँ, तो फिर विषय पर आते हैं। ये भीड़तंत्र हमारी छोटी छोटी गलतियों का ही नतीजा है। हमको सुबह विद्यालय की प्रार्थना के साथ संविधान के नज़रिए को भी समझाना चाहिए। अगर हम संविधान के बारे में कुछ जानेंगे ही नहीं तो कैसे उसका पालन करना सीखेंगे। मुझे आज तक ये समझ नहीं आता कि आप किस संविधान का पालन करने की बात करते हैं, जिसके बारे में आम इंसान कुछ जानता ही नहीं? क्या आम्बेडकर जी ने इसी सोच के साथ संविधान लिखा था? अगर हाँ, तो उनकी सोच बिल्कुल गलत थी क्योंकि मुझे लगता है कि जब तक हमारे देश के आम इंसान को संविधान की समझ नहीं आएगी, तब तक ऐसे ही जगह जगह विवाद चलते रहेंगे और आप चाहे जितने पुलिस नियुक्त कर दे या फिर एक हज़ार कोर्ट खुलवा दे उसका कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि संविधान की समझ तो किसी मे है ही नहीं।
अफसोस होता है कि आज भी हम अंग्रेजी हुकूमत के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। आज भी माननीय अदालत अंग्रेजी में फैसला देती है और हमारे वकील साहब जैसा चाहते हैं, वैसे ही अपने मुवक्किल को फैसला बता देते हैं। क्या यही हमारा स्वतंत्र भारत है जहाँ पर न्याय बिना अंग्रेजी जाने नहीं समझा जा सकता? तो कहाँ से हम स्वतंत्र हुए सरकार? कैसी स्वतंत्रता? जब हम अंग्रेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं, तो भीड़तंत्र आएगा ही ना।
ना हमको समझ है संविधान की और ना आम नागरिकों को, तो कैसे हम भारत महान कह सकते हैं। अरे, याद कीजिये रामचरितमानस की चौपाइयां हमारे बुजुर्गो की ज़बान पर हैं, उन्होंने उस संविधान को अपना मान लिया है। तो कुछ ऐसा करिये साहब कि मेरे भारत का संविधान हमारे आम नागरिकों की ज़बान पर हो, तभी हमारे देश का सही मायने में विकास होगा। वरना कितनी भी सड़कें बनवाते रहिये, जब ट्रैफिक नियम ही नहीं पता होंगे तो दुर्घटना तो होगी ही। और अगर आप सच मे दुर्घटना पर अंकुश चाहते हैं तो पहले ट्रैफिक नियम तो आम जनता को समझाइये। आसान शब्दो मे अगर कहूं तो पहले संविधान समझाइये, तब जाकर लोकतंत्र की बात कीजियेगा । वरना अब तो ना रामचरितमानस की चौपाइया किसी को याद है और ना संविधान तो भीड़तंत्र विकसित होगा ही। इंतज़ार कीजिए, अभी और घटनाएं होंगी क्योंकि ना तो आप समझेंगे और ना ही हमारी मासूम दिखने वाली जनता। और एक दिन हम आप और हमारे आपके अपने सब इसी भीडतंत्र के शिकार होंगे और कोई कुछ भी नहीं कर पाएगा। इंतज़ार कीजिए क्योंकि अगली गोली आपको लगने वाली है।