Tuesday, November 5, 2019

मानसिकता: भाग-1

मैं उस कामवाली दीदी की बेटी को क्या बोला करूँ जो अक्सर अपनी माँ के साथ मेरे जूठे बर्तन साफ करवाने आ जाती है? पता है, अभी वो दस की भी नहीं हुई है। शायद अगले महीने की 18 को उसका जन्मदिन आने वाला है। 

मुझे कैसे पता? परसों मेरी भांजी का जन्मदिन था और मैं उसी के सामने उससे फ़ोन पर amazon से भेजे गए bean-bag की तारीफें सुनना चाह रहा था क्योंकि उसकी चुलबुली जुबान मुझे पता नहीं क्यों बेहद सुकून देती है। खैर, तभी उसने मुझे बताया कि अंकल अगले महीने तो मेरा भी बड्डे है, उसी मासूमियत से जैसी मेरी भांजी का था। मैं उस वक़्त सिर्फ मुस्कुरा के उसे इशारे में चुप रहने का हुकुम चला दिया तो वो चुपचाप kitchen में अपनी माँ के साथ हो ली। पर जाते वक्त मुझे लगा कि उसकी माँ को भी मैं दीदी कहता हूं तो ideally ये मेरी भांजी लगे, तो मैंने इसको ऐसे कैसे जवाब दे दिया?

मैंने फोन कट कर दिया और सोचने लगा कि यही फर्क तो rapist करते होंगे अपनी बहन और मेरी बहन के साथ? वरना वही पहनावा तो उसकी बहन भी पहनती होगी ना? वही आंतरिक कपड़े तो उनके भी घर के तार पे सूखते होंगे ना? फिर फर्क कैसा? 

या फिर यू कहूँ कि बस काम मे फर्क है, वरना एक भांजी की उसी मासूमियत को मैं enjoy कर रहा हूँ और दूसरी को चुप? 

निर्भया का केस जब मैंने सुना तो मुझे अफसोस इस बात का ज्यादा था कि rape के बाद कई भद्र-जनों ने उसको देखा पर किसी ने उसको अस्पताल या पुलिस मदद की जहमत नहीं उठाई। आज उस एक तरीके की मुस्कुराहट पर मेरे दो विचार मुझे इस बात को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं कि क्या मैं भी उन भद्र-जनों का ही हिस्सा हूँ? क्या वो भद्र-जन अपनी बहन या बेटी या किसी अजीज को यूं ही छोड़ जाते? 

आप भी सोचिएगा और अगर जवाब हाँ में आए तो अपनी अगली पीढ़ी को सही गलत में फर्क सिखाने से ज्यादा दो मासूमियत में समानताएँ सिखाइयेगा। उनको अपने बेटे बेटी में समानता से ज्यादा समाज मे समानता दिखाइयेगा, वरना आज तो हम बस दो मासूमियत में फर्क कर रहे हैं, वो दिन दूर नहीं होगा कि आपके मित्र की लड़की का rape आपके बेटे के सामने होगा और वो चुप रह कर आपके कु-आदर्शो को आगे बढ़ाए। ध्यान रहे, मैंने अभी बस सामने होने की बात की है, वो खुद भी कर सकता है और शायद आप उसको बचाने के लिए देश का सबसे बढ़िया वकील ढूंढ रहे हो। तो खुद भी सोचिए और अपनी पीढ़ी को basic education दे वरना पढ़ाई तो ओसामा-बिन लादेन ने भी की थी और ध्यान रहे इतने सालों तक जिन अंग्रेजो ने राज किया वो भी पढ़े लिखे थे। हिटलर भी अनपढ़ नहीं था और मुसोलिनी भी। तो कलक्टर बनाने का सपना बाद में, पहले एक इंसान बनाओ। वरना..... 

मैंने एक line पढ़ी थी कहीं, कि आपकी सर्वोत्तम उपलब्धि उस बात से तय होगी कि मृत्योपरांत आपने कैसा समाज पीछे छोड़ा है।

प्रखर महेन्द्र सिंह

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